” समय बना हरकारा “
गीत
आंखों में बस खुशी छिपी ,
मनुहार की !
महकी महकी खुशबू है ,
जी प्यार की !!
समय बना हरकारा ,
चिठियाँ लाया है !
गम है या ख़ुशियाँ हैं ,
भेद छिपाया है !
जगह नहीं है शेष रही ,
तकरार की !!
फूलों का मौसम से ,
गहरा नाता है !
परिवर्तन भी अकसर ,
सबको भाता है !
आगत का स्वागत , रीत रही ,
संसार की !
मन से तार जुड़े हैं ,
परखे जाते हैं !
खरे अगर उतरे तो ,
हम मुस्काते हैं !
जगह शेष अब कहाँ बची है ,
इनकार की !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )