समय बदलता
गीतिका
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धीरे धीरे समय बदलता, जाता है अपनी ही चाल।
मौसम ने करवट बदली है, शीत ऋतु हो गई विकराल।
देखो छोटे छोटे दिन हैं, लम्बी होती जाती रात।
भोर काल में सभी दिशाएं, हुई धुंध से मालामाल।
पूरब में सूरज निकलेगा, टिप-टिप पिघलेगी तब ओस।
कुछ कुछ आएगी गर्माहट, प्राची का नभ होगा लाल।
गर्म पेय सबके मन भाते, सब मिल जुलकर पीते खूब।
सबको उलझा कर रख देता, शीत समय का मायाजाल।
हरियाली कम होने लगती, कुछ नीरस हो जाते दृश्य।
पेड़ों पर पत्ते मुरझाते, मुरझाती फूलों की डाल।
प्रकृति रूप बदलती रहती, हर ऋतु का अपना आनंद।
खुला रखें मन मौज मनाएं, जीवन हो जाता खुशहाल।
ऊंची पर्वत मालाओं पर, खूब हुआ करता हिमपात।
सर्दी से जम जाते झरने, जम जाते हैं सुन्दर ताल।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य