समय चक्र
मैं इस लिए बूढ़ा हो गया
क्यों कि
मैं धरती के साथ
समय के अनुकूल चला
अनुभव किया
भूत और भविष्य को
रात और दिन को
परिवर्तित होती ऋतु
सर्दी और गर्मी को
पतझड़ और बसन्त को
तारों की गति
उगते और डूबते
सूर्य और चन्द्र को
मिलन और विछोह की अग्नि में तप कर
भाव विभोर हुआ
मेरा कठोर तरुण मन
किसी की तपती हुई श्वास का स्पर्श पाकर लगा
सुखद एक पूर्ण जीवन को जी लिया
मैं इस लिए
बूढ़ा हो गया।।
****
नहीं होता मैं
कदापि बूढ़ा
यदि मैं चला होता
समय के विपरीत
धरती की अपेक्षा
थाम कर आकाश को
सूर्य के साथ
सदैव
मैं वर्तमान में जीता
उगते और डूबते
न देखता मैं सूर्य को
रात दिन के आंकड़े में
उम्र को न बांधता
आज के ही दिन में जीता
सैकड़ों वर्षों के दिन
नहीं होता मैं
कदापि बूढ़ा ।।
****
सरफ़राज़ अहमद “आसी”