समय चक्र
समय चक्र निरंतर चलता जाए ,
यह रोकने से भी ना रुकने पाए ।
चाहे करलें जितने भी प्रयास हम,
यह हमारे हाथ बिल्कुल न आए ।
उम्र गुजरी सु समय की प्रतीक्षा में,
आलस्य में शेष अवसर भी गंवाए।
बचपन औ जवानी गुज़ारी मस्ती में,
अब बुढ़ापा आया तो बहुत पछताए ।
ना स्वार्थ पाया ना ही परमार्थ पाया ,
दुविधा में ना माया मिली न राम पाए।
समय का चक्र अपनी रफ्तार में है,
ऐसे में कौन सी आशा पूरी हो पाए ?
अरमान पाल रखे है हमने बेशुमार ,
मगर समय हमसे छल करता जाए ।
मालूम है हमें कोई मुकम्मल न होंगे ,
इंसा जन्म मरण चक्र में फंसता जाए।
चक्र चाहे कोई हो जीवन पर भारी है ,
मनुष्य जीवन कैसे इनसे मुक्ति पाए ?
जीवन चक्र बेशक थम जाए चलते हुए ,
मगर समय अपनी गति से चलता जाए ।
कई युगों से चल रहा है निरंतर समय चक्र ,
कौन चला रहा है कोई जान न इसे पाए ।
शायद विधाता के हाथ में है इसका हत्था,
वही अपने नियम से इसे चलता जाए ।
क्या प्रलय ही रोक सकेगी इसकी रफ्तार ?
या पुनः सृजन हेतु यह अग्रसर हो जाए।
सृष्टि का नियम ही है बस चलते जाना ,
गर रुक गए तो क्या मृत्यु न कहलाए ?
समय चक्र दूसरा नाम परिवर्तन भी है ,
एकसार जीवन भला किसे भाए !
परिवर्तन संसार का नियम है प्यारे मित्रो !,
आदर्श इंसान वही जो साथ चलता जाए।बी