समय के हालात कुछ ऐसे हुए कि,
समय के हालात कुछ ऐसे हुए कि,
बचपन से जिनको सजाया संवारा समय उन्हें दूर ले चला,
ऊंची पढ़ाई लिखाई, उनकी योग्यताओं और क्षमताओं के बाद,
अब उनके लिए यहां करने के लिए कुछ रह नहीं गया है,
पैसों की दौड़ है, बड़ी आय की होड़ है, जीवन स्तर ऊंचा उठाने की चाह है,
कोई बड़े शहर तो कोई विदेश चले गए हैं, मजबूरियां तो उनकी भी हैं हमारी भी,
वह बुलाते हैं, प्यार लुटाते हैं पर हमसे घर गली छोड़ा जाता नहीं, आँसुओं ने दस्तक वहां भी दी यहाँ भी,
वो खुश रहें, यश कमाएं यही हमारी चाह है,
समय भी करवट बदल रहा है जीवन थक चुका है, शरीर लाचार हो गया है,
पति और पत्नी अकेले घर पर रह गए हैं|
न धन की चाह है, न बड़े आलीशान घर की आस, अब तो घर की चारदीवारी में बंध कर रह गए हैं,
नाती पोतों की किलकारियाँ भी अब हमसे दूर हो गईं हैं, क्योंकि अब वो भी तो बड़े हो चलें हैं|
रह गए हैं हम अपने गाँव या छोटे शहर में,
अपने गांव शहर या आस-पास जो हमने बिखेरा है,
वही प्यार अब हमारे गांव या शहर के लोग हमें लौटा रहे हैं,
नाते-रिश्तेदारों की क्या कहें, करीब के हैं पर वो दूर रहते हैं,
वक़्त पर जो साथ दे रहे, प्यार और सम्मान दे रहे,
वो कोई और नहीं, मेरे साथी संगी, अड़ोसी पड़ोसी और मेरे गाँव या शहर के लोग ही तो हैं,
अब जीवन समय कम बचा है, जो पूंजी शेष है वही अब दे रहे हैं कि
प्यार बांटते चलो – सबसे मिलो और हंसते चलो।
लोगों के आंसू पोंछते चलो, प्यार बांटते चलो…