समय की रेत
सरकने तो दो
इन समय के
दरवाजों को
देखना सब भेद
खुल जाएँगे
आज जो
इन दरकती रेतों पर
अपने निशां छोड़
बैठे हैं
कल इन्हें तलाशने
वे हाँफते चले आएँगे
पर…..
इन चिह्नों को
जब तक
समय का दैत्य
खा जाएगा
अपने लहर के
विशाल पंख फैलाता
उम्र का ये दरिया
उन चिह्नों को
समेट ले जाएगा
जो रस इन्होंने
यहाँ छोड़ा था
वो कोई ओर
मधुकर पी जाएगा
और इनके लिए
रह जाएँगी केवल
यादें बस यादें
और ये यादें
जब सताती हैं
तो वक्ष
सुलगने लगते हैं
आँखें
तिरमिराने लगती हैं
देह स्वयं को
बिसराने लगती हैं
और फिर……..
वे केवल और केवल
एक अवलंब के लिए
तरसते रह जाएँगे
पर जिस समय को
वो पद-दलित कर गए हैं
वो लौटकर नहीं आएगा
फिर तो पश्चाताप भी
सखे!
व्यर्थ कहलाएगा…….
सोनू हंस