समय की बहती धारा में
समय की बहती धारा में
कितने आगे निकल गए
हम न बदल सके खुद को
तुम कितने बदल गए
गुफ्तगू होती थी हर रोज कभी
हफ्ता बीतते आ जाती थी चिट्ठियां भी
अबोले मे बीते दिन फिर साल निकल गए
तुम कितने बदल गए
हम मिलने की करते गुजारिश
तुम मसरूफियत की सिफारिश
फिर हुई आजमाइश फिर करी कोशिश
चोट खायी दिल ने,पर संभल गए
तुम कितने बदल गए
क्यों रिश्तों में आया बदलाव
क्यों मिट गया अपनेपन का भाव
क्या दोष दे वक्त को जो नहीं ठहरा
या तेरी फितरत को, नहीं रहा मेरा
एक हसीन ख्वाब था जो बीत गया
या अंजान मोड़ था जो छूट गया
बदल जाऊंगा मैं भी सोच दिल बहल गया
करता भी क्या, जब तू बदल गया
चित्रा बिष्ट
(मौलिक रचना)