समय की चाल को
* गीतिका *
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पहचान लेना है समय की चाल को।
फैले हुए उलझन भरे जंजाल को।
धोखा कभी हो भी गया तो ग़म न कर।
जो बच गया दो अहमियत संभाल को।
नाकामियों की अब न हो चर्चा कहीं।
कर लो मुहब्बत भूल बीते हाल को।
बेख़ौफ़ हो आकाश में उड़ते रहें।
रखना परिंदों हित बचा हर डाल को।
हर हाल सह लेना समय की मुश्किलें।
झुकने न देना तुम कभी निज भाल को।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०४/०३/२०२१