समय का खेल
किसी के चले जाने से समय नहीं रुकता,
किसी नये के आ जाने से समय नहीं झुकता,
जो वापस आ जाए वो समय नहीं,
समय लौट आए ये खेल नहीं,
जो लोग बाहर से दिखते हैं कठौर,
असल में वही होते हैं कमज़ोर,
समय पर किसी का चाल नहीं है जोर,
कवि कोई ऐसा ही नहीं बनता है,
कुछ तो बात होती है,
किसी के हालात,
तो किसी को जज़्बात होते हैं,
जो लोग मुझे नीचा दिखाते हैं,
वो लोग कभी खुद नहीं उठत पाते हैं|
मेरी किस्मत बताने वाले,
लोगों को पागल बनाने वाले,
वक़्त मेरा भी आएगा,
तू बस समय देख,
‘मैं क्या हूं’,
ये तो सिर्फ समय ही बताएगा,
मैं कितना भी बुला लू,
वो समय वापस नहीं आएगा,
मैं कितना भी सुना लूं वो पल वापस नहीं आएगा|
ये सिर्फ कहानियाँ होती हैं,
जिनमें रानियाँ होती हैं,
ये दुनिया है जनाब,
यहाँ खुद की अच्छाइयाँ,
और दूसरों की बदनामियाँ होती हैं|