समय और रिश्ते।
यह कहानी अर्चना नाम की एक महिला की है।वह एक घरेलु महिला थी।उसकी पढ़ाई किसी कारणवश बारहवी तक ही हुई थी। अर्चना अपने परिवार में बहुत खुश थी। उसके पति सिविल सर्विस मे अधिकारी थे।उसके दो बच्चे थे। एक लड़का और एक लड़की। बच्चे अभी पढ ही रहे थे।बेटा दशवीं मे पढ रहा था और बेटी नौंवी मे। बच्चे काफी कुशल, व्यवहारिक और पढने मे काफी तेज थे। पति बहुत ईमानदार और मेहनती अधिकारी थे। जब भी ऑफिस के तरफ से कोई पार्टी होती अर्चना को खास तौर पर बुलाया जाता था।जब वह जाती तो कुछ आफिस के लोग झट से गाड़ी का दरवाजा खोलने आ जाते। कुछ लोग अर्चना के आवभगत मे लग जाते।अर्चना के मना करने पर भी आफिस के लोग उसके आगे-पीछे लगे रहते थे। कोई-कोई तो अर्चना को अपने पति से काम या प्रमोशन कराने की सिफारिश के लिए भी कहता था। अर्चना न चाहते हुए भी इन लोगो से घिरी रहती थी। वह जब अपने पति के साथ आफिस या आफिस की पार्टी मे जाती थी तो लोग उसकी काफी आवभगत करते थे।एक दिन उसके पति की तबियत खराब हो गई और अचानक दिल का दौरा पड़ने के कारण उनकी मौत हो गई।
अर्चना पर तो जैसे विपदा का पहाड़ टूट गया। वह क्या करे ,उसे कुछ भी समझ नही आ रहा था। घर की स्थिति भी उतनी अच्छी नही थी।जो भी था वह ले देकर एक पति की नौकरी थी।जो पति के साथ वो भी नही रही ।थोड़ी-बहुत पति ने जमीन खरीदा था।पर अभी अपना घर नही बनाया था।अर्चना जिस घर मे रह रही थी। वह सरकारी बंगला था जो उसके पति को दिया गया था।अब उस मकान को अर्चना को वापस करना था।अर्चना अपने बच्चों को लेकर कहा जाए, वह सोच मे पड़ी हुई थी और फिर इसी साल उसके बेटे का दशवी का परीक्षा भी था।तभी उसके पति के एक दोस्त ने कहा- भाभी ,आप अनुकम्पा आधारित नौकरी कर लो।इससे आपको एक छोटा सा सरकारी मकान भी मिल जाएगा और वहाँ रहकर बच्चे अपनी पढ़ाई भी जारी रख सकते है।अर्चना अब समझ चुकी थी की उसके जीवन में अब संघर्ष शुरू हो चुका है।उसने अपने पति के दोस्त से अपने नौकरी के लिए हामी भर दी।कुछ प्रकिया के बाद के बाद उसे पति के जगह पर अनुकंपा आधारित नौकरी मिली।नौकरी उसके योग्यता के अनुसार मिली थी इसलिए उसका पद बहुत छोटा था।संयोग वश उसकी नौकरी उसी आफिस मे लगी जिसमें उसके पति कभी बड़े अधिकारी थे और जब भी वह जाती थी उसका भरपुर स्वागत होता था।आज समय ने उसे फिर उसी आफिस मे लाया था। पर आज पहले जैसा कुछ भी नही था।सब लोग वही थे,पर आज सब कुछ बदल गया था।आज कोई उसके लिए दरवाजा खोलने नही आया।उसके आगे-पीछे अक्सर रहने वाले लोग उससे मिलने तक न आए।एक चपरासी आया, उसे एक कोने मे टेबल-कुर्सी दिखाकर बैठने के लिए बोला और कुछ फाइल लाकर उसे काम समझाते हुए वहाँ से चला गया।अर्चना के आँसू थम नही रहे थे पर आज उसने अपने आपको पत्थर बना लिया था।अब उसके जीवन का संघर्ष जो शुरू हो चुका था और शायद वह भी इससे लड़ने के लिए कमर कस चुकी थी।वह हालातों के साथ खुद को ढाल रही थी ताकि बच्चों पर इसका कोई असर न पड़े।मकान खाली करने का नोटिस उसे पहले मिल चुका था इसलिए वह अपने नौकरी के अनुसार मकान के लिए पहले ही अर्जी दे चुकी थी।आज वह सरकारी बंगला छोड़कर एक रूम के मकान मे रहने जा रही थी।इन कुछ महीने मे वह कितने बार टूट कर बिखरी और कितने बार खुद को समेटा ,उसे खुद ही पता नही था। लेकिन जब भी वह बच्चो के पास जाती, खुद को बहुत मजबूत दिखाती।बच्चे के पढ़ाई मे किसी तरह का बाधा न पड़े ,इसका वह पुरा ध्यान रखती।बेटा का दशवी परीक्षा हो गया और वह अच्छे अंक से पास भी कर गया।इधर अर्चना भी घर और आफिस के बीच तालमेल बैठा लिया था।आज चार साल बाद अर्चना को एक बड़ी खुशी मिलने जा रही थी।अर्चना के दोनो बच्चे जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए जो तैयारी कर रहे थे।बेटा जो पिछले साल नही निकाल पाया था।इस साल दोनो भाई-बहनों ने एक साथ आई .आई. टी. ईजीनियरिंग निकाल लिया था।आज अर्चना बहुत खुश थी, बस दुख था तो सिर्फ अपने पति का न होने का। आज उसे एकबार फिर से आफिस में सब सम्मान के नजरों से देख रहे थे और दोनों बच्चे के आई •आई •टी• निकालने के लिए बधाई भी दे रहे थे।अर्चना सभी लोगों की बधाई सहस्र स्वीकार कर रही थी। पर समय ने अर्चना को अपने और मतलबी लोगो के बीच मे फर्क करना सीखा दिया था। उसके पति के गुजरने के बाद उसने जिन हालातों का सामना किया उन हालातों ने उसको काफी बदल दिया था।आज वह पत्थर जैसी मजबूत हो चुकी थी।बच्चे आज कॉलेज जा रहे थे।अर्चना के आंखो मे आँसु भरा था। वह सोच रही थी की आज से वह अकेली रह जाएगी पर खुशी इस बात की थी आज बच्चे अपना भविष्य बनाने जा रहे थे। बच्चे पढने के लिए निकल गए और अर्चना रोजमर्रा की जीवन मे लौट आई। बच्चे को वह समय-समय पर फीस और अन्य जरूरतों के लिए रूपया भेजा करती थी।बच्चे छुट्टियों मे अर्चना के पास आ जाया करते थे और कभी-कभार वह खुद ही बच्चो के कॉलेज जाकर उन लोगो का हाल-समाचार लेती रहती थी।आज उसके पति के गुजरे हुए दस साल हो गये थे।बच्चे को अच्छे कंपनी में नौकरी मिल गयी था ।बच्चे नौकरी छोड़कर अर्चना को अपने साथ चलने की जिद्द कर रहे थे। तभी अर्चना रोते हुए बोली यह मेरे लिए बहुत खुशी की बात है की तुम लोग मुझे अपने साथ ले जाना चाहते हो।पर अब मैं यहीं रहूँगी और बचे हुए नौकरी के जो तीन साल हैं उसे पुरा करूँगी। यह अलग बात है की पहले मैंने जरूरत के लिए नौकरी की थी पर आज यह मेरे समय निकालने का तरीका हो गया है।मै तुम सब के पास आती जाती रहूंगी ।यह कहकर उसने बच्चो को मना लिया। आज अर्चना रिटायर कर गई है।उसने पति द्वारा खरीदे गए जमीन पर घर बना लिया है।आज भी वह राँची मे रहकर मुफ्त मे आदिवासी बच्चों को पढाती है।आज वह लोगों को समझाती रहती है सबको ज्ञान होना बहुत जरूरी है और लड़की को तो खास तौर पर उच्च शिक्षा हासिल करनी चाहिए। आज वह कहती है कि समय ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है ,खास कर आदमी का पहचान करना।
~अनामिका