समय – अबूझ पहेली
समय जब करवट लेता ।
सब कुछ पलट देता ।।
आँखों देखी एक कथा ।
छुपी जिसमे मेरी व्यथा ।।
भीड़ भरी थी एक बाकर ।
अनगिनत थे यहाँ नौकर ।।
आया समय बन अबूझ पहेली ।
ले गया उड़ा कर देखो हवेली ।।
आज बनी हालत उझड ।
देखो पड़ा वहाँ पतझड़ ।।
कभी गूँजती थी किलकारियाँ ।
अब ढूँढे नही मिलती परछाइयाँ ।।
कभी था गर्व से सीना चौड़ा ।
आज समय ने सब तोड़ा ।।
पहले सबको खूब लताड़ा ।
आज समय ने उनको पछाड़ा ।।
जो कभी गगन चूमते थे ।
अपने पर वो इठलाते थे ।।
मखमल ओढ़े थी रातें पूस ।
देखो उगी आज घास फूस ।।
बड़े बड़े जो थे दरवाजे ।
आज करते चूँ चूँ आवाजे ।।
जो थे जल स्त्रोत सुंदर ।
समा रखा था समन्दर ।।
आज उग रहे पेड़ जिन पर ।
बदहाली कहते ,रो रो कर ।।
जो थे बगीचे कभी हरे हरे ।
आम नीम महुआ से भरे भरे ।।
आज देखो सब उजड़ गए ।
अपनी व्यथा किसे सुनाए ।।
समय बड़ा बलवान हैं ।
वही एक कृपा निधान हैं ।।
इसलिए सब कहते है …..!
मानव है, मानव बनकर रहो ।
जो सत्य है, वही सब कहो ।।
समय जब करवट लेता ।
सब कुछ बदल देता ।।
।।।जेपीएल।।।