समभाव से चले चल राही
जीत हार को भूलकर
समभाव से चले चल राही
तेरा मकसद जीतना या हारना नही
बस निरन्तर चलते रहना,
जीतकर भी कौन यहाँ जीत सका
हार के भी कौन यहाँ हारा,
खुद की ताल में चल ,
खुद के ख्याल में चल ,
खुद की चाल में चल,
तेरा चलते रहने में ही सच्चा सुख है
हार और जीत तो बस
वाह्य छलावा मात्र है,
असल द्वन्द तो भीतर है,
जिसमें जीत भी तुम्हारी
हार भी तुम्हारी,प्रतिद्वन्दी भी तुम्ही,
प्रतिस्पर्धा भी खुद से,
इसलिए तटस्थता के साथ चल
जीत हार भूलकर
समभाव से चले चल राही।
………….… पूनम कुमारी