समन्वय
नर से नारी का आदर सत्कार समन्वय नितांत है जरूरी ।
प्रकृति ने सौंपी है बौद्धिक अन्वेषण की कुंजी इन दोनों को ।
प्रतिकर्ष परस्पर झुकना झुकाना रूठ जाना और मनाना ।
इस सब के बीच ही आपसी चाहत की जरूरत हो भुनाना ।
जिद्द न हो प्रतिस्पर्धा हो आपस में समझौता मगर सबसे पहले हो ।
उलझाव के परित्याग का देखो आलिंगन है एक दूसरे को समझना ।
तूने ये कहा वो भी मुझ से अब देखना मैं तेरा क्या हाल करूंगा ।
अरे नायक जिसे नाक पूँछनी जिस नायिका ने हो सिखाई ।
माँ थी वो उसी के गर्भ से उद्भव हुआ तेरा कैसे चिल्ला सकता है ।
सोच जरा गहरे से शांति से एय मानव प्रकृति का चितेरा ।
प्रेम से प्रेम का रखते हुये सम्मान कहना होता है वो जो यदि जरूरी श्रीमान ।
तमो गुण से ज्यादा रजोगुण कूटनीति के परिकल्पित करते यही स्वप्न साकार दे वरदान ।
हम कौन यहाँ स्थाई हम जातक अजन्मे अस्थाई श्वास तक नहीं बस में हमारे ।
माँ थी वो उसी के गर्भ से उद्भव हुआ तेरा कैसे चिल्ला सकता है ।
नर से नारी का आदर सत्कार समन्वय नितांत है जरूरी ।
प्रकृति ने सौंपी है बौद्धिक अन्वेषण की कुंजी इन दोनों को ।
मिल कर प्रयास दोनों का रचता सृजन खास सन्मार्गी दोनों सा ।
नख शिख नयन नक्श चेहरा तेरे सा उआ उसके कटीले तेवर सा ।
जरूरी तो नहीं लेकिन शत प्रतिशत लेकिन लगभग हम दोनों सा ।
पहचान बन जाएगा तेरे बाद उसके बाद लोगों को याद दिलाएगा ।
माँ थी वो उसी के गर्भ से उद्भव हुआ तेरा कैसे चिल्ला सकता है ।
सोच जरा गहरे से शांति से एय मानव प्रकृति का चितेरा ।