समन्दर सी फितरत सा
बिछड़ा तो मोहब्बत का वहम दरमियां रहने दिया
मुंह मोड़ के गुज़रा और दरिया-ए-मोहब्बत नजरों से बहने दिया
समझी थी मैं जिसको फकत आसमान सा यारो
था समंदर सी फितरत सा हर नदी को जिसने ख़ुद में बहने दिया
प्रज्ञा गोयल ©®
बिछड़ा तो मोहब्बत का वहम दरमियां रहने दिया
मुंह मोड़ के गुज़रा और दरिया-ए-मोहब्बत नजरों से बहने दिया
समझी थी मैं जिसको फकत आसमान सा यारो
था समंदर सी फितरत सा हर नदी को जिसने ख़ुद में बहने दिया
प्रज्ञा गोयल ©®