*समझ लें सीख नये साल में*
जिंदगी खराव ही गई वेसबुरी में महताब की ।
किस्मत ही डुबा ली खुद की और औलाद की ।।
अब् आखै खुलीं तो दुआ देने बैठे बुढापे में
हरिफों की गरीबी में लुटी इज्जत जायदाद की ।।
नासूर का इलाज तो दवा से ही मुमकिन होगा
जाने बहुत लंबी उम्र है , रिश्ते से जल्लाद की ।।
बिना आँखों के अँधेरा ही दिखता है सब तरफ
उजाले में ही दिखती है , रौशनी आफ़ताब की ।।
कलम घिसना ही सीख लिया होता उस बखत
कटती नहीं मिटटी भरी महफ़िल में जवाव की।।
टक्कर खाके अकल आती है “साहब”आदमी को
समझ लें सीख वो नये साल में बाबा साहब की ।।