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22 Sep 2023 · 1 min read

समझ मत मील भर का ही, सृजन संसार मेरा है ।

समझ मत मील भर का ही, सृजन संसार मेरा है ।
जरा-सी साँझ है मेरी, जरा-सा शुभ सवेरा है ।
उड़ानें भर अभय होकर, अरे आजाद मन पाँखी –
न केवल मेदिनी तेरी, अखिल आकाश तेरा है ।

अशोक दीप
जयपुर

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