समझ न पाया कोई मुझे क्यों
समझ न पाया कोई मुझे क्यों
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समझ न पाया कोई मुझे क्यों।। ध्रु।।
अंगारों पे चल रहा हूं
रास्ता खुद बना रहा हूं ।
रोशनी बनके फैल रहा हूं
अंधेरे को चीर रहा हूं।
जंजीरों को तोड़ रहा हूं
दीवारों को फोड़ रहा हूं।
दुश्मनों को मार रहा हूं
लोहा अपनो से ले रहा हूं।।1।।
समझ न पाया कोई मुझे क्यों।।
ऊंची बाते कर रहे हैं
प्रमाण हमसे मांग रहे हैं
तोहमत हमपे थोप रहे हैं।
शब्दों से मैं कर रहा हूं वार
पहन के वर्दी देखो एकबार
तोपों,गोलियों की भडीमार।
मौत के सामने हम बने दीवार
देश के लिए हम बने खुद्दार
दुश्मनों के लिए बने खूंखार।।2।।
समझ न पाया कोई मुझे क्यों।।
तिरंगे की आन बान और शान
यही हैं मेरे देश की पहचान
आंच न आने देंगे उसपर हम कुर्बान।
मर मिटने के लिए हम तैयार
ऐ मां भारती हम सपूतों का प्यार
न्योछावर करे हम जीवन बारबार।
लहराएं हमारा तिरंगा उस पार
जहां तक हो हमारे सांसों की धार
कहता है ये सिपाही बार बार ।।3।।
समझ न पाया कोई मुझे क्यों
पूछता हैं एक सिपाही लगातार।।
मंदार गांगल “मानस”
(पूर्व भारतीय नौसैनिक)