समझौता
लड़की,
बीड़ी की
टोकरी लिए
जाती है,
कारख़ाने
रोज़-ब-रोज़ ।
ठेकेदार
घूरता है उसे
श्वान की तरह,
ताकता है,
उसकी देहयष्टि ।
जैसे कि-
लड़की बीड़ी है,
या बीड़ी ही
लड़की है ,
रोज़-ब-रोज़ ।
फिर भी
लड़की बीड़ी
बनाती है,और
टोकरी लिए
जाती है कारख़ाने
रोज़-ब-रोज़ ।
तेंदूपत्ते की गिड्डी
उसके लिए है
जैसे-काग़जों
की रीम ।
जिसमें पढ़ती है
लड़की ग़रीबी
का पाठ और
सीखती है हिसाब
दुनियाँदारी का ,
ठेकेदार की
आँखों में छलकती
वासना ,
गलियों से ग़ुजरते
मनचलों के
अश्लील ताने और
कई बार
फ़ाका-मस्ती झेलकर
वक्त से पहले ही
सयानी हो चली
है, अब लड़की ।
लड़की,जिसके
हाथ में थमना था
स्कूल का बस्ता ,
जिसके गीत से
गूँजना थीं
घर की दीवारें ।
उसे भूख ने
थमा दिए तेंदूपत्ते,
जरदा और टोकरी।
छोकरी फिर भी
प्रसन्न है,क्योंकि-
उसके भाई तो
जाते हैं स्कूल ।
वे पढ़ेंगे ,
अफ़सर बनेंगे
और करायेंगे
उसका व्याह
किसी अम़ीर के साथ ।
इस आशा से
लड़की बीड़ी
बनाती है और
टोकरी लिए
जाती है कारख़ाने
रोज़-ब-रोज़ ।
बाबा उसे
पढ़ा नहीं सकते,
लड़की
पराया धन है
उनकी नज़र में ।
माई उसे खिला
नहीं सकती क्योंकि-
लड़कों को
कम पड़ जाएगा
रोज़ का भोजन ,
फिर भी
उसकी कमाई में
सभी का
हिस्सा है ,
बाबा का ,
माई का और
भाई का ।
इसलिए लड़की
बीड़ी बनाती है
और टोकरी लिए
जाती है कारख़ाने
रोज़-ब-रोज़ ।
मनचलों की
सीटियाँ सुनते हुए ।
बुनते हुए सपने
सुंदर भविष्य के ।