समझौता
पतंग सी जिन्दगी है
ना जाने कहाँ जाये
किस पेड़ की डाल में
फँस उलझ जाये
कैसे अस्तित्व को बचाए
हर कोई खडा यहाँ
कच्चे पक्के धागों की
ले हाथों मे चर्खियाँ
खींचने को अपनी ओर
पर पहिचान कर
सद को चुनना है
समझौता कर जीवन
भर साथ चलना है
हर कन्या सुन्दर पतंग
सी है यहाँ पर
जिन्दगी उसकी किसी
ओर के हाथ थमी है
ना जाने कब खींच दी
जाये और फट जाए
घर हो या बाहर
सब ओर समझौता
कर चलना है
डोर से कट वजूद
अपना खो देती है जा
पड़ती किसी नाले में
यहाँ समझौता शब्द
खो देता है अपना
~अर्थ~