समझों! , समय बदल रहा है;
समझों! , समय बदल रहा है;
समझों, ये युग बदल रहा है।
जब बांध स्वयं पानी पी जाये
जब वृक्ष स्वयं फल को खाये
जब धेनु स्वंय का दुग्ध स्वतः ही
परोपकार हीन हो पी जाये
समझों! , समय बदल रहा है;
समझों, ये युग बदल रहा है।
जब मानव स्वार्थ परत हो,
संवेदना हीन हो जाये
जब राजा चापलूसों के हित में
संगृहित राजकोष लुटाए
समझों! , समय बदल रहा है;
समझों, ये युग बदल रहा है।
जब सरकारें निर्धन जनता पर
उत्पीड़न, अत्याचार जमाये
निरंकुश को जन के धन से
मौज-मस्ती ‘कर’ उड़ाये
समझों! देश बदल रहा है
समझों, भेष बदल रहा है।