समझिए चालीस पार हुए
समझिए चालीस पार हुए
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लटों से चाँदी झलक आए,
कमर का कमरा बन जाए,
समझिए चालीस पार हुए।
मस्ती के दिन भी पार हए।
आँखों पर चश्मा चढ़ जाए,
नंबर भी जसका बढ़ जाए,
समझिए चालीस पार हुए।
मस्ती के दिन भी पार हुए।
शुगर का तन पर हमला हो,
बी पी भी उतरता चढ़ता हो,
समझिए चालीस पार हुए।
मस्ती के दिन भी पार हुए।
काटे न कटे दिन और रात,
भाये न कोई मन को बात,
समझिए चालीस पार हुए।
मस्ती के दिन भी पार हुए।
तनबदन भी भारी होने लगे,
चलने मर लाचारी होने लगे,
समझिए चालीस पार हुए।
मस्ती के दिन भी पार हुए।
कोई नहीं तुमको भाव दे,
बाहर जाने का न चाव रहे,
समझिए चालीस पार हुए।
मस्ती के दिन भी पार हुए।
बच्चे जब तुम पर भारी हों,
बहसबाज़ी हरपल जारी हो,
समझिए चालीस पार हुए।
मस्ती के दिन भी पार हुए।
बीता वक़्त याद आने लगे,
बिचड़ों की याद सताने लगे,
समझिए चालीस पार हुए।
मस्ती के दिन भी पार हुए।
घर मे नहीं कोई सुनता हो,
आना-कानी भी करता हो,
समझिए चालीस पार हुए।
मस्ती के दिन भी पार हुए।
प्रेम का भूत भी उतर जाए,
मन का भाव निखर आए,
समझिए चालीस पार हुए।
मस्ती के दिन भी पार हुए।
सावन हरे नहीं भादों सूखे,
खा पीकर भी जब रहें भूखे,
समझिए चालीस पार हुए।
मस्ती के दिन भी पार हुए।
सुनता नहीं तुम्हारी बात हो,
काले दिवस सफेद रात हो,
समझिए चालीस पार हुए।
मस्ती के दिन भी पार हुए।
जवानी का रंग बिसर जाए,
जीवन का रंग बिखर जाए,
समझिए चालीस पार हुए।
मस्ती के दिन भी पार हुए।
बरसातें जब खटकने लगे,
बोलते जुबान अटकने लगे,
समझिए चालीस पार हुए।
मस्ती के दिन भी पार हुए।
मनसीरत सदा अकेला हो,
गुरु पर भारी जब चेला हो,
समझिए। चालीस पार हुए।
मस्ती के दिन भी पार् हुए।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)