समझाते रहे हम
ज़माने को समझाते रहे हम,
अपनी बात मनवाते रहे हम।
तक्लीफ मुझे थी ये बताते रहे हम
अक्सर उनको भुलाते रहे हम।
थी आंधिया गमो की लेकिन,
धुंध सा उसे उड़ाते रहे हम।
काशमकस थी जिंदगी में बहुत,
न चाह कर भी मुस्कुराते रहे हम।
जो खुद कभी न समझ पाये वो,
उसे समझाते रहे हम।
वक्त रेत की तरह फिसलती जा रही,
फिर भी रेत के घरौंदे बनाते रहे हम।
दर्दे जिंदगी की बेरुखी के वास्ते,
मुस्कुराहटो की कली खिलाते रहे हम,
तेरे वास्ते हो या मेरे वास्ते,
दर्द दबाकर भी खिलखिलाते रहे हम।।