समंदर
मुझे समंदर से बात करने का
शौक़ नहीं है
मैं जब भी गया, बैठा किनारे पर
कुछ कहने की कोशिश भी की
पर वो सुनता कहाँ है
बस हर वक्त बोलता रहता है
यह जानता हूँ मैं
हर कोई पहुँच जाता है उसके दर
कितने लोगो के क़िस्से सुने हैं उसने
जब कोई मिलने आता है उससे
तो उससे रहा नहीं जाता
दोहराता रहता है सुने सब किस्सो की दास्ताँ
कहता है शायद
तुम्हारी मुश्किलें नयी नहीं हैं
बहुत आयें हैं,
जो गुज़रे हैं इन रास्तों से,
तुमने पैर के निशान देखे नहीं
या शायद मैंने ही मिटा दिये
ये सोच कर, इसी बहाने बैठोगे तो
दो पल तुम मेरे क़रीब
कुछ नये लम्हे सी लेंगे हम तुम
छिपा लेंगे तुम्हारे दर्द को
लगा देंगे रेत का पैबंद
मैं जब भी जाता हूँ, बैठता हूँ उसके पास
वो इतना बोलता है
मुझे कहने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती
बहुत कुछ कहना चाहता हूँ
सब कुछ सुन कर आ जाता हूँ
मन हल्का हो जाता है
कितना कुछ समझ लेता है समंदर
कुछ भी कहो पर
बोलता है बहुत समंदर
@संदीप