समंदर में कोई हलचल नहीं है,
समंदर में कोई हलचल….., नहीं है,
कहीं काला घना बादल…., नहीं है।
इजाज़त दी तुझे चल, इश्क़ कर ले,
मेरे जीवन में कोलाहल…., नहीं है।
मोहब्बत में नफ़ा-नुक़सान कैसा..?
खरा सोना है’ ये….., पीतल नहीं है।
उदासी का कहो क्या राज़ यारो…?
अभी तक जो खुली बोतल नहीं है।
डरूं मैं क्यों लुटेरों से.. भला अब ?
कलम है हाथ में…., संदल नहीं है।
मुझे अफ़सोस.. उसके झूठ पर था,
ग़मों से दिल मेरा…,बोझल नहीं है।
मैं सुलझा दूं.. तेरी सब उलझनें पर,
मेरी इन मुश्किलों का.. हल नहीं है।
रही हद चौखटों तक ही…., हमेशा,
कहीं पैरों में’ तो सांकल.., नहीं है ?
उड़ानों पर…., भरोसा रख “परिंदे”,
सफर में गर कहीं पीपल.., नहीं है।
पंकज शर्मा “परिंदा”