समंदर के उस पार
कुछ अजीब अनजान सा है ये समंदर
कुछ पंछी कही दूर, कुछ खोये हुए से
मैं याद नहीं करता, ना ही उन्हें सोचता
उन्हें याद करना भी तो अजीब है
वो किनारा भी बिसराया हुआ सा
कुछ पत्थरों से बनी रेत का
लहरों से बिखरी हुई कुछ चट्टानें भी
दर्द लिए बैठी हैं खारेपन का
पर वो पल मन को विचलित करते हैं
कुछ दर्द देते हैं, कुछ ग़मगीन करते हैं
क्षितिज के उस पार कुछ सुकून दिखता है
चल चलते हैं, समंदर के उस पार
–प्रतीक