सभ प्रभु केऽ माया थिक…
सभ प्रभु केऽ माया थिक…
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मूर्ख व्यक्ति में उत्पन्न अहंकार ,
प्रभु भक्ति से नष्ट भऽ सकैछ ।
मुदा ज्ञानीजन में यदि अहंकार उत्पन्न होइछ ,
तऽ ओ सर्पविष सऽ कम घातक नहिं।
ई किन्नहु नष्ट नै भऽ सकैछ ,
अहंकार हुनक शरीर के साथे जायत।
सभ प्रभु केऽ माया थिक…
चाहे लाख जतन कऽ लिअउ ,
हजार उपदेश कान में ठुसि दिअउ ।
भाँति भाँति के जोगाड़ लगा लिअउ,
प्रेमक पाँति सऽ हृदयक तार झंकृत कय दिऔन।
हुनक कुतर्क के आगाँ अहां निष्फले रहब ,
एहि युग के रावण अडिगे रहत ।
सभ प्रभु केऽ माया थिक…
तुलसीदास रामचरितमानस के चौपाई ,
कोन मनोभाव आ मानसिकता में लिखने हेताह।
ओहि मनोभाव परखब संभव नहिं भेल ,
ते पूरा रामायणे के जला दियौक ।
धर्मग्रंथ के श्रद्धा निष्ठा के बिना पढब ,
ते मगज में लूत्ती उड़बे करत ।
सभ प्रभु केऽ माया थिक…
तुलसीदास एक जगह लिखने छैथ _
” जाकी रही भावना जैसी ,
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ”
ओ ढोल गंवार शुद्र पशु नारी के उल्लेख ,
कोन भाव, कोन अलंकार लेल केयने रहैथ ,
जानब नै,बस कूपमण्डूक बनि जहर उगलैत रहउ ।
ईहो वोटक खेला तऽ प्रभू केऽ माया थिक…
मौलिक आओर स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०२ /०२ /२०२३
माघ,शुक्ल पक्ष ,द्वादशी,गुरुवार
विक्रम संवत २०७९
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