मुखरित सभ्यता विस्मृत यादें 🙏
सभ्यता बोल रही 🙏
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सभ्यता का विकास नहीं था
ज्ञान विज्ञान अवतार नहीं था
मानवता छिपी गुफा कंदरा में
पोषण भोज्य भरा पहाड़ों में
समझ पहचान का विधाअभाव
बोली वाणी संप्रेषण लिपी नहीं
चिन्ह चित्रों मे संदेशों का संसार
उपजा विचार था प्राकृत भाषा
पेन पेंसिल कागज लिखावट
समझ से परे आस पास नहीं
तिमिर निशा ज्योत उषा बिहान
वस्त्र विहीनता की काया माया
प्रेम प्यार झुण्ड वास भरा ज्ञान था
जंगल झाड़ लुका छिपीं में पलता
नुकीले पाषाण अस्त्र-शस्त्र भंडार
शिकार शिकारी एक दूसरे परभारी
खानपान आवास अरमान नही था
खुले आसमां खानाबदोशी जीवन
असभ्य परंपरागत संस्कृतियों का
नामों निशान हड़प्पा मोहनजोदड़ो
सभ्य सभ्यता के नव विकास द्वार
अनुसंधान खोज का नया इतिहास
पाषाण लौह ताम्र कांस्य स्वर्ण
युगों से चलती फिरती सभ्यता
स्मार्टफोन आधुनिक संप्रेषण पर
आयी नूतन प्रेम संस्कृति सभ्यता
मुखरित सभ्यता देती जन संदेश
हे देश ! पहचान समझ समझौता
अर्जित ज्ञान को ना कर विस्मृत
स्मृति से आगे की नयी पहचान
धूमिल सभ्यता को रखना संभाल
पूरखों की ज्ञानों का है नव संचार
करुणा प्रेम धर्म कर्म सहिष्णुता
परिवर्तन विकास नूतन है भारत
ज्ञान विज्ञान का नव भारत विशाल
जय भारत जय जन जन भारत ।
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तारकेशवर प्रसाद तरुण