सभ्यता गुम हो गई है
**सभ्यता गुम हो गई है कहीं और
असभ्य आदमी ढूंढ रहा है उसको
बहुत लगन से बाजारों में
, थककर, कबाड़ो और बूचड़खानों में
आदमी आदमी की टांग खींच
,समय मिलते ही रौंद कर बढ़ जाना चाहता है बहुत आगे, एकछत्र राज
भागम भाग कर शायद थका नही है ,
हाथ से हाथ छूट रहे हैं इसी उत्साह में ,
एकछत्र राज,
रिश्ते रिस नही रहे
घिस रहे हैं बहुत ज्यादा ,
बेखौफ अजनबी हवाओ के साथ समझोता,
बोझिल सांसे , उबाई आ रही है ,शायद उसे नही
वक्त का गुलाम, अपनों से दूर , अपरिचित भाषा ,
संवेदनहीन व्यवहार ,
बदल डाला संसार ,नियम कैद, स्वार्थ की जेल में
हर ओर एक ही चर्चा ,
अधूरे लोग क्यों दिखाई दे रहे हैं चारो तरफ ,
आदमी जड़,
चेतना शून्य ,खोज रहा है अपने को दूसरो में , मृग तृष्णा और क्या
खोज जारी है
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