सभी सुविचारों का स्वागत है
क्या कहे, कितना कहे,
कैसे कहे, कब तक कहे,
ध्यान धरकर इन सभी को,
हर कलम कहती रहे !
शब्द चाहे वक्र हों,
हर शब्द में संस्कार हो,
अग्नि भी प्रतिशोध की
कोई कलम से ना बहे !!
है नहीं आसान भी, यह
साधना साहित्य की,
किन्तु दुष्कर भी कहाँ?
यह कलम चलती नित्य ही !
‘शर’ न उगले लेखनी-
निज ही प्रयोजन के लिए,
भावना सबकी समझ,
हर प्राज्ञ जन लिखता रहे !!
– नवीन जोशी ‘नवल’
दिल्ली