सब हमारा ही नाम लेते हैं
जामे लब शब् तमाम लेते हैं
लेकिन उल्फ़त के नाम लेते हैं
दिल पे तीरे नज़र चलाके ग़ज़ब
आप भी इंतकाम लेते हैं
ज़िक़्रे आशिक़ अगर हो महफ़िल में
सब हमारा ही नाम लेते हैं
था न मालूम इश्क़ में बेगार
आप भी सुब्हो शाम लेते हैं
काढ़ा-ए-दीद, हम मुहब्बत का
जब भी होता जुक़ाम, लेते हैं
इश्क़ हमने किया है पर टेंशन
याँ क्यूँ हर ख़ासो आम लेते हैं
छूट जाए मजाल क्या ग़ाफ़िल
हम कलाई जो थाम लेते हैं
-‘ग़ाफ़िल’