सब वर्ताव पर निर्भर है
जाते हो कहाँ, अभी जरा ठहरो.
कल तक रोब दिखाते थे,
यहाँ नहीं, वहां नहीं.
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दुख भोगना है तो :-
प्रतिक्रिया करें,
गाली आवत एक है, पलटत एक अनेक.
सहज रहना, आदत बनानी होगी,
शांत स्वभाव का स्वरूप होता है,
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चीढ़ जाना,
फिर काम करना,
अहित को गले लगा लेने जैसा है,
आपके पास अपना क्या है ?
जवाब आयेगा ज्ञान.
वह भी उधारी है,
जिसे तुम जानते हो,
अनुभव के बिना,
बिन प्रायोगिक,
वह आपका नहीं है ।
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मैं कोई “आत्म-चिंतक” तो हूँ नहीं,
“निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटि छवाय”
एक आलोचक जिसनें,
जिसे आलोचना करने का इसलिये,, आधार नहीं है । क्योंकि उससे अच्छा,, अपना श्रेष्ठ तो किया नहीं,,
एक राजनेता अपने विध्वंस नीतियों और पार्टी की विचारधारा की वजह से,
निथरे पानी को हिला हिलाकर,
फिर से गदला कर करके,
दिखाते आ रहा है,,
देखो भाईयों और बहनों,
पिछले सत्तर साल में,,
ये किया है,,
उन्होंने ने,,
खैर बातें
हवाई चप्पल से हवाई जहाज तक के सफर को,,
प्रति व्यक्ति आय को,
रोजगार बढ़ाने और नौकरियों को छीनने के सफर को,, कोई कुपढ़ ही सराहना कर सकता है,
आपको दिखाया क्या जा रहा है,
और हो क्या रहा है ।
इस पर अंध-आस्था /अंध-श्रद्धा /अंध-विश्वास को पालने से
शायद ही कोई सुधार हो ।
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रोजमर्रा का जीवन
आपको बहुत सी जिम्मेदारियां देता है,
और आप जिम्मेदारी से भाग रहे हैं,
न कोई सीखने की इच्छा
न ही गलत को गलत कहने का साहस,
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आप अपनी प्रकृति से वाकिफ नहीं हैं,
बाहर की प्रकृति में भेडचाल चलती है ।
एक नेता गालियां गिनवा कर,
वोट बटोर रहा है,
आपको होश ही नहीं ।
कोई नेता,
जिसको जनता ने प्रतिनिधि चुना है ।
वह प्रतिनिधि इतना बेबस वह,
अपनी शक्तियों के उचित प्रयोग तक नहीं जानता है,, और जनता उसे प्रोत्साहन देती रहे ।
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भीड़ के पास अपना मस्तिष्क नहीं होता.
वह जब तक अनियंत्रित होकर काम करती रहेगी,
जब तक वह किसी निर्देशन तले काम न कर रही हो ।
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लोग कहते हैं,
देश में नेतृत्व का अभाव है,
देश के सामने विकल्प ही क्या है ?
जब जिम्मेदारियां खुद पर पड़ती हैं,
और वह जिम्मेदार बनना चाहता है,
तो सफलता मिलेगी ही,
लेकिन जिम्मेदारियों से भागने वाला नेता,
खुद को विज्ञापन और खुद को परोसने में लगा रहे,, ये एक विकार है विकास कैसे !
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अतीत से सीख कर,
अतीत के मद्देनजर रख कर ही आगे बढ़े जा सकता है, अतीत को ढाल बनाकर,
आप अपना बचाव अवश्य कर सकते है,
उसको पायदान बनाकर बाधा को पार कर सकते हो,, वो तुम्हें भाता नहीं है,,
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“आप कर्म करो, और फल की इच्छा मत करो”
पढ़ कर बड़े हुए हो.
तो सहज भाव से आप कुंठित ही रहेंगे,
आप पीठ पीछे बुराई, करने के स्वभाव वाले बनेंगे,,
आप कर्म भी करो,, फल भी नकद करो.
उधारी किसलिये और क्यों
बिन योजना और कार्य करे बिन,
आप उद्देश्य से भटकते रह जायेंगे,
ईश्वर सिर्फ़ दोष देने के लिए है,
कचरा फेंकने के लिए कूडेदान.
जब आपको हर किये का फल मिलता है,
तो प्राप्त करने और देने वाले आप ही हैं ।
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बस आपको जिम्मेदार बनना है,
हां !
मैंने किया !
अपनी दृष्टि दृष्टिकोण से अच्छा ही किया था,
आपको पसंद नहीं आया,
थोड़ा धैर्य रखें,
परिणाम आने शेष हैं,