सब लाजवाब था __ गजल/ गीतिका
घाव तीर तलवार के लगे होते तो इलाज संभव था।
शब्द बाण चुभे है जिनका ठीक होना लाइलाज था।।
इस चमचमाते इनाम का हकदार कोई और ही था।
रसूख ही ऐसा था मेरा कि मेरे सिर पर ही ताज था।।
किन किन ठोकरों का हिसाब दूं दोस्तों मैं जमाने को।
कदम कदम पर गिरा हूं मैं जिसका गहरा राज था।।
धन के साथ तन का अभिमान देखा है जमाने में।
दो वक्त का भोजन मिल गया हमें इसी पर नाज था।।
बीते जमाने को याद करके दिल भर आता है हमारा।
इतना समर्पण था तब आज तो अपना ही नाराज था।।
महफिल तो सजी थी बड़ी लंबी चौड़ी कुछ सुनाएंगे।
स्वर संगीत तो बजा नहीं सबका अपना अल्फाज था।।
खासियत और क्या-क्या लिखूं बताऊं यारो तुमको।
जितना लिखा अनुनय समझ लेना सब लाजवाब था।।
राजेश व्यास अनुनय