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28 Oct 2021 · 1 min read

सब मिटे हृदय के ताप हरे

सब मिटे हृदय के ताप हरे! यह विषमय विस्मय-पाप हरे!

सब वेद – वाङ्गमय , तंत्र – मंत्र,
जादू- टोने होने न होने से क्या?
अमोल क्षणिक-माणिक,मुद्रा,मोती
पाने से अथवा खोने से क्या?

जब जीता है संताप हरे।सब मिटे हृदय के ताप हरे!

जो इस लोक को जीते हैं उनका
नर्क – स्वर्ग मरीचिका भूतल है।
अन्वेषण-रत हैं पनडुब्बियाँ,शेष
तर्कहीन अगाध नहीं जल है।

यह निरा नहीं प्रलाप हरे। सब मिटे हृदय के ताप हरे!

नहीं तरूंगा वैतरणी में
उस पार रहो तुम;इसी पार रहूँ मैं!
बल दो इतना कि पथ के सारे
आतप-अंधड़ शत-शत बार सहूँ मैं।

रहे कर्मयोग – प्रताप हरे। सब मिटे हृदय के ताप हरे!

-सत्यम प्रकाश ‘ऋतुपर्ण’

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 205 Views
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