सब चलता है!
येे जुमला हमने कई बार सुना है,सब चलता है! यह कहते हैं।
चलने को चाहे कुछ नहीं चलता,पर अक्सर लोग यही कहते हैं।
कब हमने यह सोचा था कि ,हम भी कभी कैदी बन जाएँगे ।
अपने ही लोगों के साथ में रहते,अपने ही घरों में कैदी हो जाएंगे।
सोचें जरा हम यह भी, जो वर्षों से जेलों में रह रहे हैं।
कारागृह में वर्षों से जो रहते,क्या हम इतना भी सह पाएँगे।
माह नहीं बिता अभी पुरा पर,हम कितने विचलित हो रहे हैं!अभी जाने कितने माह लगेंगे, हम हैं कि एक-एक दिन गीन रहे हैं सभी।
महामारी का संकट है यह भारी!! हम पर ही है अपने को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी!
घर के बाहर है दुष्ट कोरोना,जब हमको यह सुनाते हैं!
बार-बार यही बतलाते हैं,सुन सुन कर हम अकुलाते हैं।
उनकी नहीं है कोई जबाब देही,यही भाव वह जतलाते हैं।
अब भी तो यही राय है उनकी,सब चलता है! यह कह जाते हैं।
मजदूरों की जब सड़कों पर भीड़ थी उमड आई !
उनको ही दोषी मान लिया,गया,जिन पर आफत थी बन आई ।
उठक-बैठक खूब कराई,रेंगने को भी था मजबूर किया गया!
लाठी-डंडों का प्रहार सहा, भूख से जब नहीं रहा गया।
घर पहुँचने से रोका उनको,और कैम्पों में भेज दिया !
तब भी वह नहीं माने,हर हाल में घर को जा रहे थे!
तभी यह सुनने में आया,अब बच्चे भी हैं चिल्ला रहे!
हम को भी घर भेजो, चीख-चीख कर कह रहे !
कोई इनकी भी सुनले इस विपदा में,ये कल के भविष्य हमारे हैं!
कुछ तो करके दिखाओ सरकार,ये मासूम हमारे प्यारे हैं।
टूट ना जाए मां बाप की आस, ये उनकी आँखों के तारे हैं।
इन सब की मजबूरी को ना ,अब ढाल बनाओ जी!
सेवा करने की कसम थी खाई,अब उन कसमों को निभाओ जी।
भार है तुम पर जिस जनता का,कुछ तो उनका भी ख्याल करो!
संवेदन होना भी सिखो,सिर्फ अपनो तक ना सिमटे रहा करो ।
आह लग गई इन सबकी तो,नहीं बचेगी यह ठकुराई !
दोष किसी और के सिर पर मढ लेने की,ना चल पायेगी यह चतुराई !
नहीं चलेगा अब यह कहना,सब चलता रहता है भाई।