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19 Sep 2017 · 1 min read

“सब अपने लिए फ़कत कुर्सी ढूंढते हैं “

मूफ़लिसी में भी रहबरी ढूंढते हैं।
बैवकुफ़ हैं वो जो जिंदगी ढूंढते हैं।

रहबसर चाहते हैं सभी उजालों में।
कुछ एेसे हैं जो तीरगी ढूंढते हैं।

मालूमात हैं कि सब नकाबी है यहां।
नादानों जैसे असलगी ढूंढते हैं।

नज़र हैं की चकाचौंध हैं चारों ओर।
अंधों के माफ़िक सादगी ढूंढते हैं।

खबर है कोई साथ नहीं देता यहाँ।
फिर भी लोग यहाँ मसहगी ढूंढते हैं।

जान होकर भी मरे हुए हैं सभी यहाँ।
लोग कब्र में भी जिंदादिली ढूंढते हैं।

जिम्मेदारी नहीं चाहता कोई यहाँ।
सब के सब बस आवारगी ढूंढते हैं।

फिक्र नहीं है यहां अब किसी को किसी की।
सभी बस अपनी सलामती ढूंढते हैं।

मुश्किलों से कोई जुझना नहीं चाहता।
सभी यहाँ बस आसानगी ढूंढते हैं।

साम दाम दंड चाहें जैसे हो”राम ”
सब अपने लिए फ़कत कुर्सी ढूंढते हैं।

स्वरचित
रामप्रसाद लिल्हारे “मीना “

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