सब अनहद है
जिसने सूरज चाँद बनाया,
धरा गगन ब्रह्मांड बनाया।
जिसने सुमन सुंगन्ध भरा है,
जिससे तरु तृण हरा हरा हैं।
अनन्तक्षितिज तक जो भी हद है।
और नहीं कुछ सब अनहद है।
एक बूंद जल कैसे फलता,
कैसे गर्भ में जीवन पलता।
बिना पवन के सांसे चलती,
अति लघु घर में देही पलती।
मंथर मंथर बढ़ता कद है,
और नहीं कुछ सब अनहद है।
प्रातः कैसे सूर्य उगाता,
रात में चंदा मामा लाता।
कैसे कण अंकुर बन जाये,
कैसे भंवरा गुन गुन गाये।
ऋतु में पावस ग्रीष्म शरद है,
और नहीं कुछ सब अनहद है।
वही धरा पर गन्ना उगता,
इमली नीम केरला लगता।
चंदन महर महर महकाता,
रेंण पेंड दुर्गंध बहाता।
मीठे आम से बिरवा लद है,
और नहीं कुछ सब अनहद है।
उसी ने नर की देह बनाया,
देह में अपना गेह बनाया।
नौ दरवाजे एक झरोखा,
बहुत वृहद उपहार अनोखा।
सोच सोचकर मन गदगद है,
और नहीं कुछ सब अनहद है।
मोखे में एक नन्हा तिल है,
तिल सदैव करता झिलमिल है।
नयन मूंद दिखता अंधियारा,
अनहद जगे होय उजियारा।
वहां न काम क्रोध छल मद है,
और नहीं कुछ सब अनहद है।
नानक कविरा मीरा गाया,
तुलसी सूर रैदास को भाया।
बुल्ला बाहू रूम लुभाया,
निज में अनहद नाद जगाया।
अनहद में मिलबने अन हद है,
और नहीं कुछ सब अनहद है।
अनहद है करतारी शक्ती
कर अनहद की प्यारी भक्ती।
जिसने इससे की अनुरक्ती,
जग से होती सहज विरक्ती।
अनहद में मुक्ती की जद है,
और नहीं कुछ सब अनहद है।
अनहद चाह तो गुरु घर जाओ,
बनकर अनुचर युक्ती पाओ।
अनहद गाओ अनहद पूजो,
हरि अनहद सम हैं नहीं दूजो।
हरि बेहद अनहद बेहद है,
और नहीं कुछ सब अनहद है।
जब से सन्त गुरु है पाया,
तबसे केवल अनहद गाया।
सिरजन अब अनहद अनुरागी,
गुरु कृपा से है बड़भागी।
अनहद संगति अमृत पद है,
और नहीं कुछ सब अनहद है।