” सब्र बचपन का”
” सब्र बचपन का”
नव दंपति ज्यों हर्षोलास से
करते हैं इंतजार सावन का
मीन की बढ़ती तड़फ ज्यों
अलगाव हो जब पानी का,
बचपन करे वैसे ही सब्र
फाल्गुन माह के आगमन का
होली का अब आएगा त्यौहार
न्यारा होगा मजा घर में पकवान का,
पर्व पावन के इस अवसर पर
डफ और ढ़ोल हम बजाएंगे
शाम होगी तब होलिका दहन में
पूजा कर प्रहलाद को बचाएंगे,
देर रात तक बजाएंगे पटाखे
मौहल्ले में मिठाई बटवाएंगे
नई सुबह का इंतजार बेसब्री से
धुलंडी पर चेहरे खिल जाएंगे,
पानी के टैंक में रंग घोलकर
स्पीकर में गाने भी बजाएंगे
छोटे गुब्बारों में पानी भरकर
छत पर हम चढ़ जाएंगे,
घरवालों के माना करने पर भी
पक्का रंग खरीदकर लाएंगे
गुलाल लगाएंगे मम्मी पापा को
दोस्तों को पक्के रंग में डुबाएंगे,
सुबह से शाम बस पानी और रंग
सारे इसमें हम रंग जाएंगे
फाग की इस मस्ती को
हम कभी नहीं भूल पाएंगे।