सब्र का पैमाना
सब्र का पैमाना जब झलक जाये……
फिर बताएं कोई… क्या किया जाए……
है सियासत ये सरासर..लोगो..की
अब मुहब्बत को केसे बचया जाये……
कौन खुश है इस जमाने में…
किस तरह हर इस गम को मिटाया जाए
.इस तरह t से तो तोड़ा नहीं जाता ताल्लुक……
हो जरूरी तो हर रिश्ता निभाएं… जाए.
उसके झूट को भी सब…. सच समझेंगे…
अब गवाही के लिए किस को बुलायजाये
वो मेरे दोस्त है.. दुश्मन की तरह
उनके चेहरे से नाकाब अब उतारा जाए
खोल दे जो सारे बंद दरवाजे… दिल के
ऐसा सजदा अब अदा किया जाए
……… शबीनाज़