सब्र का इम्तेहान लेते हो।
सब्र का इम्तेहान लेते हो।
और बागी करार देते हो।
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खूब वादों इरादों की बातें।
बीच दरिया उतार देते हो।
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जिस्म लेते हो फूल सा लहका।
और वापस बीमार देते हो।
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काट लेते हो सूद पहले ही।
क्या मदद क्या उधार देते हो।
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तेरा अहसान उम्र भर चलता।
खुद का फौरन उतार देते हो।
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उतने में खुद गुजार कर देखो।
आप जितनी पगार देते हो।
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तुम “नज़र” कब्ज़ा कर दिमागों पर।
उनको लफ़्ज़ों से धार देते हो।
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