सबैया
जब आँख हुईं विरहा कुल ते पागल, तब कलियों से ओस लिया लिपटाय|
कुछ अदभुत गुण उधार लेकर रवि ते, उत सतरंग रूप में चली नहाय||
कुछ यूँ आतुर है तितली रस की, कलियन से हिल-मिल काम चलाए|
उत प्रीति की आग ते पगी कलियाँ, बिहसि चली सगरा मकरंद उड़ाय||
*** धीरेन्द्र वर्मा ***
मोहम्मदपुर दीना जिला-खीरी (उ.प्र.)
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