सबसे बड़ा दुख
सबसे बड़ा दुख
उस दिन मन बहुत उदास था
तनहाई भी बेगानी-सी लग रही थी
जज्बात भी मानो टूट कर बिखर गए थे
मन में कुछ सवाल थे
जिनका जवाब आज ढूँढना था मुझे
आंखें बंद किए बरगद की छांव तले अभी बैठा ही था
कि कंधे पर किसी के हाथों का मर्म स्पर्श पाते ही
आंखें के कपाट जो बंद थी खुल गए
पीछे मुड़कर देखा तो जिंदगी
मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी
फिर मेरा हाथ पकड़ कर पूछा
दोस्त यह बताओ
जिंदगी का सबसे बड़ा दुख क्या है
मैं थोड़ा सकपकाया, थोड़ा सकुचाया
फिर आंखों से बहते आंसुओं को पोंछते हुए बोला
सर से पिता का साया जब हट जाए
यही दुनिया का सबसे बड़ा दुख है
बहुत जतन किए मगर
पिता जैसा साया अब तलक मिला नहीं
जितने भी साये मिले अब तक
अपनेपन का वह एहसास नहीं मिला
जो मिला था कभी पिता के साये में
इतना सुनते ही ज़िन्दगी भी लगी थी सिसकने
शायद अपने सवाल का जवाब उसे आज मिल गया था