” सबको जीने दो “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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झरना के गति को भला
कौन रोक सकता है ?
वायु के गति के सामने
किसी का नहीं चलता है !!
प्रकृति सदा अपने चक्रों
में बदलती रहती है !
वर्षा को जहां बरसनी है ,
वहीं बरस कर रहती है !!
प्रलय के हुंकार से ,
सारी धरा कंपित होती हैं !
कहीं धूप कहीं छांव तो ,
कभी आग निकलती है !!
पक्षी को सीमाओं पर ,
भला किसने रोका ?
कवि के कल्पनाओं को
भला किसने टोका ?
हम स्वक्षन्द सदा ही ,
रहना चाहते हैं !
अपनी भावना को ,
लेखों में दरसाते हैं !!
है अधिकार आपको भी ,
कुछ कहने का !
पर वाध्य नहीं कर सकते ,
किसी को कुछ लिखने का !!
आप रहें स्वतंत्र और सबको ,
स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाएँ !
सबको शालीनता के बोलों से ,
कानों में अमृत बरसाएँ !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका