सबको इक़ ही नज़र के दायरे में रक्खा जाए
ग़ज़लों को ग़ज़लों के दायरे में रक्खा जाए
नज़्मों को नज़्मों के दायरे में रक्खा जाए
शायरी को शायरी के दायरे में रक्खा जाए
लफ्ज़ों को लफ्ज़ों के दायरे में रक्खा जाए
मग़र कोई ना कहे कि अरी ग़ज़ल तू क्या है
कोई ना कहे नज़्म तू क्या है, ना पूछा जाए
ना कोई कहे शायरी तू क्या है ,कोई ना कहे
कोई ना कहे लफ्ज़ तू क्या है ,ना कहा जाए
सब इक़ दुज़े से जुड़े हैं औऱ जुड़े ही रहेंगें
सब को इक़ ही नज़र के दायरे में रक्खा जाए
मैंने क़लम की बेक़रारी को बयाँ कर दिया
हु ब हु मेरे मुल्क़ में सब को ऐसे ही देखा जाए
~अजय “अग्यार