सबके नसीब में बहार नहीं
21 1 2 +1 2 1+ 2 1 1 2
सबके नसीब में बहार नहीं
सबकी रुहों को है क़रार नहीं
दर्द उठे मिले न ज़ख़्म कोई
कौन है वो जो बेक़रार नहीं
मुझको नहीं पता है हश्र मिरा
नाव मिरी लगी है पार नहीं
कोई क़रार पाये तड़पे कोई
कह दे मुझे तुझे है प्यार नहीं
यूँ तो क़दम-क़दम पे पाँव छिले
खार मिले, गुलों के हार नहीं
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