सबकुछ झूठा दिखते जग में,
सबकुछ झूठा दिखते जग में,
सांचा तेरा नाम
दिखे जिसे दिख जाए खुद में,
मन बन जाये धाम
जैसा सोचा वह ही पाया,
नियम यही पैगाम
शंका मन में रही तुम्हारे,
मिले न उसे विश्राम
होड़ दौड़ में भागता
मूरख मानव जा
हर जीवन के बाद मरण है,
काहे तू बौरात
करनी कथनी एक नहीं है,
व्यर्थ सभी उपदेश
एक विलासी कैसे देता ,
हमें त्याग संदेश
क्यों दुशासन को सौंप दी है,
ये शासन की डोर
तब कर्ण ने क्यों नहीं रोका,
उन हाथो को ठौर
सरस छंद का अभ्यास