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3 Jun 2023 · 1 min read

सबकुछ कहाँ किसी के पास

सब कुछ कहाँ किसी के पास,
लेकिन कुछ न कुछ सबके पास।

कौन धरातल मानव ऐसा
सुपरिचय जिसका न अभाव से,
शुष्क नयन से मात्र निराश,
सुखस्वप्नों की नहीं कोई आस।

सब कुछ कहाँ———————————————

स्पर्धा में मानव जीता नित,
विश्वास आत्म खोता भरपूर,
बिखर रहीं निर्धनता-वश ही,
उसकी जर्जर निर्बल स्वाँस।

सब कुछ कहाँ———————————————

सपने,श्रम,आकांक्षा उरतल,
किन्तु नहीं सुसाधन पर्याप्त,
लोचन वाचाल मौन-धारी,
अधरों पर फीके से सुहास।

सब कुछ कहाँ———————————————-

बदलें यदि दृष्टिकोण व सोच,
जीवन कलिकाएं खिल जाऐ,
मलिन अभाव अनुभूति हो ये,
सोल्लास मनु भी करे प्रयास।

सब कुछ कहाँ———————————————-

–मौलिक एवम स्वरचित–

अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ (उ.प्र)

Language: Hindi
Tag: गीत
234 Views
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