सबकी होती है सहेलियां
उठता हूं सुबह सोकर
तो मुझे उषा उठाती है
घुलता मिलता हूं जबतक
छोड़कर चली जाती है।।
फिर आ जाती है रोशनी
चारों ओर चमक बिखराती है
पड़ती है जब हम पर
शरीर में गर्माहट लाती है।।
जब रोशनी अच्छी लगने लगे
तो बीच में मेघा आ जाती है
छोड़ जाती है रोशनी फिर
और मेघा दिल पर छा जाती है।।
मेघा भी छोड़ जाती है जब
मिलने वर्षा आ जाती है
कर देती है मौसम सुहाना
मेरे दिल को भा जाती है।।
रहती नहीं ज्यादा देर साथ
ये चंचल वर्षा भी तो हमारे
अब गायब हो जाती है वर्षा भी
छोड़कर शीतल को पास हमारे।।
शीतल से बचने के लिए
अब ज्वाला का सहारा है
राहत देती है वही फिर
जिसको हमसब ने पुकारा है।।
ध्यान से सुनना, समय अब
संध्या के आने का हुआ है
संध्या के साथ ज़्यादा नहीं रह पाते
क्योंकि समय अब घर जाने का हुआ है।।
जब तक घर पहुंचते है अंधेरा
लेकर निशा आ जाती है
थकान देखकर हमारी वो
हमें निंद्रा को सौंप जाती है।।
निंद्रा के साथ भी चैन नहीं
अब मिलने सपना आ जाती है
ले जाती है हमें अलग दुनिया में
और हमें अपना बना जाती है।।
अब फिर से नया दिन आ गया
उषा फिर से उठाने आ गई
छोड़कर अब सपना की दुनिया
फिर उषा दुनिया में आ गई।।
लाख मना करे कोई लेकिन
ये सहेलियां तो सभी की होती है
कटता है तभी दिन हमारा
जब ये सहेलियां साथ होती है।।