सबकी आंखों में एक डर देखा।
सबकी आंखों में एक डर देखा।
देखा जंगल की एक शहर देखा।
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कुछ भी मुमकिन है इस रिसाले में।
राह देखी है और सफर देखा।
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देखा महलों को खंडहर बनते।
हमनें आहों में वो असर देखा।
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ज़िंदगी भर रहे वो नज़रों में
उनकी जानिब जो इक नज़र देखा।
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मौत को साथ लिए फिरते हैं।
फिर भी लोगों को बेखबर देखा।
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कभी लगता है देख ली दुनियां।
कभी लगता है के सिफर देखा।
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जो भी दिल में ज़हन में रहता है।
उसको ही पाया है जिधर देखा।
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तोड़ न पाया वक्त भी हारा।
हमने इंसा में वो सबर देखा।
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कैसे कह दूं “नज़र” है अमृत सब।
नंगी आंखों से है ज़हर देखा।
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Kumar Kalhans