दीवार में दरार
देखिए हर घर में दीवार नजर आती है
उसी दीवार में एक दरार नजर आती है
कुछ बोलना भी चाहे पर बोल नहीं पाती
अपनों के व्यवहार से बेजार नजर आती है
देखिए हर घर में………..
कभी रहते थे सभी एक ही छत के नीचे
आज खड़े हैं क्यूं लकीर तकरार की खींचे
वो छत जिसमें बुजुर्गों की आत्मा रहती थी
आज वही छत बेबस लाचार नजर आती है
देखिए हर घर में…………
कभी होता था प्रेम भाव जिन रिश्तों में
आज लेते हैं मानो कि वो सांस किश्तों में
जो रिश्ते महकते थे कभी यूं बयार बनकर
आज उन्हीं में खिंची तलवार नजर आती है
देखिए हर घर में…………
दिलों में नफरत का है बोलबाला यहाँ
छा रहा अंधेरा खो गया है उजाला कहां
वो प्यार वो अपनापन अब है कहां देखो
बस गिले-शिकवे या तकरार नजर आती है
देखिए हर घर में………….
“V9द” कितने बदल गए हैं आज सब
क्या दबी रह जाएगी मेरी आवाज अब
क्या कभी भी नहीं सुधरेंगे ये हालात हैं जो
सबकी अपनी-अपनी सरकार नजर आती है
देखिए हर घर में…………..