सबका हो कल्याण
विधा –दोहागजल
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आओ हम फिर से करें, नवयुग का निर्माण।
सबका सम अधिकार हो, सबका हो कल्याण।
औषधि शिक्षा मुफ्त हो, हाथ सभी के काम,
देखो अन्न अभाव में, जाए कहीं न प्राण।
सबके दिल में प्रेम हो, सबका हो सद्भाव,
नहीं किसी के पास हो, नफ़रत का किरपाण।
वाणी पर संयम रहे, सबका हो सम्मान,
भाईचारे में कभी, शब्द बने ना बाण।
कलयुग यह सतयुग बने, बहे ज्ञान रसधार,
बचे रहें अपकर्म से, सबका होगा त्राण।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’